पुणे में GBS का प्रकोप बढ़ने पर सरकारी अस्पतालों

पुणे में GBS का प्रकोप बढ़ने पर सरकारी अस्पतालों में आईसीयू बेड की कमी अब चिंता का विषय है :

GBS

जो GBS उपचार के लिए जो महत्वपूर्ण है। पुणे शहर के सरकारी अस्पताल में वर्तमान में उन्हीं चीजों की कमी आ गई है। कहीं गंभीर गिलियन- बैरे सिंड्रोम रोगियों का इलाज कर रहे हैं, अब आईसीयू बेंड की कमी को लेकर कुछ चिंता व्यक्त कर रहे हैं

आईसीयू बेड कमी का कारण :

5 जनवरी से इन मामलों की संख्या बढ़ना शुरू होने के बाद कुल 205 लोग इससे प्रभावित हो गए हैं। इसके बाद अब तक 100 से ज्यादा लोगों को छुट्टी दे दी गई है। अभी भी 50 लोग गहन देखभाल में हैं और 20 लोग वेंटिलेटर सपोर्ट पर हैं।

इटावेनस इमयूनोगलोबुलिन की एक खुराक की कीमत ₹20,000 तक हो सकती है। और साथ ही निजी अस्पतालों में इलाज का बिल अधिक होने के कारण कई मरीजों के परिवार सरकारी अस्पताल की ओर आ रहे हैं।

राज्य के महात्मा ज्योतिराव फूले जन आरोग्य योजना के तहत मरीजों का इलाज निशुल्क किया जा रहा है। जिससे सरकारी अस्पतालों में GBS उपचार, और पलासमफेरेसिस भी शामिल है।

अधिकारियो ने क्या कहा :

इस पर वित्तीय राहत का दोहरा प्रभाव पड़ा है। जिससे सरकारी अस्पतालों में मरीजों की संख्या बढ़ गई है। और कुछ मामलों में परिवार वालों को निजी हॉस्पिटलों किसे हटना पड़ा। क्योंकि अब वहां के बिल वहन करने में असक्षम है। इसी कारण संख्या में और बढ़ोतरी हो गई है।

क्योंकि छाती की कमजोरी मांसपेशियों के कारण सांस लेने में दिक्कत होने लगती है। साथ अधिक गंभीर GBS मामले में तत्काल आईसीयू में भर्ती करना पड़ता है

सासून और नावले के अस्पतालो के अधिकारियों ने कहा दोनों अस्पतालों में आईसीयू भी भरे हुए हैं। इनमें GBS के और गंभीर बीमारियों से पीड़ित मरीज भरे हुए हैं।

नवले अस्पताल के एक अधिकारी ने बताया कि कुछ दिन पहले हमें एक GBS के मरीज को भर्ती करने से मना करना पड़ा क्योंकि हमारे पास सभी आईसीयू बेड भरे पडे हैं। इसके बाद मरीज निजी अस्पताल से 2 दिन के बाद ही वापस आ गया । उसके परिवार का कहना था कि वह इलाज खर्च नहीं उठा सकते।

GBS

वर्तमान में 6 GBS रोगियों का इलाज किया जा रहा है। उनमें से पांच गहन देखरेख में हैं। जिनमें से, तीन की हालत गंभीर बताई जा रही है। अधिकारियों का कहना है कि अस्पताल में 37 आईसीयू बेड हैं और इसका प्रकोप अभी भी जारी है। इसलिए प्रमुख चिकित्सा संसाधनों और कर्मचारियों पर और दबाव बढ़ने की संभावना है।

अस्पताल में अन्य भी गंभीर देखभाल वाले मरीज भी हैं। जैसे की डायलिसिस करने वाले या हृदय शल्य चिकित्सा कराने वाले मरीज। GBS मरीज को 100% आईसीयू सहायता और विशेषज्ञों की पूर्ण ध्यान की आवश्यकता होती है।

अधिकारियों का यह भी कहना है कि हम आपातकालीन कमरों में भर्ती अन्य मरीजों का तब तक इलाज कर रहे हैं। जब तक उनकी हालत सुधार नहीं जाती।

इनमें से एक अधिकारी का कहना है कि आईसीयू बेड की हमेशा कमी रहती है, लेकिन GBS के प्रकोप के कारण स्थिति और खराब हो गई है। क्योंकि GBS मरीजों को आईसीयू की लंबे समय तक जरूरत रहती है। अक्सर 2-3 सप्ताह या उससे ज्यादा समय के लिए अधिकांश अन्य स्थितियों में आईसीयू में रहने का सामान्य समय लगता है।

वर्तमान में ससून में गहन देखभाल में 7 GBS रोगी हैं। शेष 32 पहले से ही गंभीर बीमारियों से पीड़ित रोगियों द्वारा उपयोग किया जा रहा है। इसका मतलब अस्पताल में एक भी रोगी की संख्या बढ़ने से परेशानी का सबक बन सकता है। मुंबई में जहां 5 बड़े मेडिकल कॉलेज और सरकारी अस्पताल बीएमपी ने विकसित किए हैं। पुणे के सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा विभाग के अनुसार, मरीज को अंतिम समय में लाया गया जब परिवार के पास पैसे नहीं थे।

ससून के अधिकारी का कहना है कि एमजेपीजेएवाई निजी अस्पतालों में GBS उपचार करता है। लेकिन 2.6 लाख रुपए तक खर्च के कारण परिवार को अधिक खर्च करना पड़ रहा है।


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